Sunday, December 21, 2008

वो चंद लम्हे

वो चंद लम्हे जो किस्मत ने मेहेरबा हो कर
मेरे दमन में मोहब्बत से मुझे बख्शे थे
वक्त ने जब किसी शाम यूँ करवट ली थी
तेरे गेसू मेरे शानो पे कभी बिखरे थे
वो सुबहो जब तेरा हाथ था मेरे हाथों में
और अंधेरे भी उदासी के वहां धुंधले थे
दूर तक राह में खिलती हुई थी खुशियाँ
फूल राहों पे बड़ी दूर तलक बिखरे थे
वादियों में तेरी आवाज़ की झंकारें थीं
तेरे होटों के तबस्सुम से सभी निखरे थे
वो हसीं रात के जब चाँद भी शरमाया था
उन निगाहों ने सितारों को नफस बख्शे थे
बैठ केर पेड तले घंटों वो बातें करना
कितने अफ़साने फिजाओं में वहां बिखरे थे
झूम के बरसे थे मोहब्बत भरे बदल हम पर
खुशनुमा रंग वफाओं के वहां बिखरे थे
और फिर ये हुआ के चलते चलते
रास्ते मुर गए तुम कहीं खो गए
मैं अकेला भटकता हूँ अब भी वहीँ
मुझको लगता नहीं हम जुदा हो गए
मैं सुबहो शाम उन्ही लम्हों में जी लेता हूँ
जाने वो लम्हे तुम्हे याद भी हैं या के नहीं

4 comments:

  1. बहुत उम्दा

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  2. झूम के बरसे थे मोहब्बत भरेबादल हम पर
    खुशनुमा रंग वफाओं के वहां बिखरे थे
    बहुत खूब ज़ाकिर साहेब आपने तो शमा बाँध दिया .. आपका हार्दिक स्वागत है मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लायें

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  3. और फिर ये हुआ के चलते चलते
    रास्ते मुर गए तुम कहीं खो गए
    मैं अकेला भटकता हूँ अब भी वहीँ
    मुझको लगता नहीं हम जुदा हो गए
    Khub likha hai aapne. Swagat blog parivar aur mere blog par bhi.

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