Saturday, January 31, 2009

जहाँ को भूल जाना चाहता हूँ

जहाँ को भूल जाना चाहता हूँ
तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ

गुजारिश है ये तुमसे अर्ज़ सुन लो
मैं हाले दिल सुनना चाहता हूँ

इजाज़त दो इन्हें गुस्ताख कर लूँ
निगाहों को मिलाना चाहता हूँ

सिमट जाओ मेरे सीने में के मैं
तुम्हें सबसे छुपाना चाहता हूँ

करो जो बन पड़े मुझ पर सितम तुम
मैं ख़ुद को आजमाना चाहता हूँ

गरज ये के बहे जाते हैं आंसू
मैं जितना मुस्कुराना चाहता हूँ

कहीं ऐसा न हो के रूठ जाओ
ज़ख्म दिल के दिखाना चाहता हूँ

मनाया है तुम्हें हर बार मैं ने
मैं अब के रूठ जाना चाहता हूँ

बड़ी दिलकश हैं ये आँखें तुम्हारी
इन्ही में डूब जाना चाहता हूँ

सहारा दे भी दो बाहों का के मैं
जहाँ के गम भुलाना चाहता हूँ

गरेबा चाक जुबा पे नाम तेरा
तेरे कुचे में आना चाहता हूँ

सबब कोई नज़र आता नही है
मैं बस आंसू बहाना चाहता हूँ

Wednesday, January 21, 2009

हम टू हर बार मोहब्बत से सदा देते हैं

हम तो हर बार मोहब्बत से सदा देते हैं
आप सुनते हैं और सुनके भुला देते हैं

ऐसे चुभते हैं तेरी याद के खंजर मुझको
भूल जाऊं जो कभी याद दिला देते हैं

ज़ख्म खाते हैं तेरी शोख नीगाही से बोहोत
खूबसूरत से कई ख्वाब सजा लेते हैं

तोड़ देते हैं हर एक मोड़ पे दील मेरा
आप क्या खूब वफाओं का सिला देते हैं

दोस्ती को कोई उन्वान तो देना होगा
रंग कुछ इस पे मोहब्बत का चढा देते हैं

तल्खी ऐ रंज ऐ मोहब्बत से परीशां होकर
मेरे आंसू तुझे हंसने की दुआ देते हैं

हाथ आता नही कुछ भी तो अंधेरों के सीवा
क्यूँ सरे शाम यूँ ही दील को जला लेते हैं

हम तो हर बार मोहब्बत का गुमा करते हैं
वो हर एक बार मोहब्बत से दगा देते हैं

दम भर को ठहरना मेरी फितरत न समझना
हम जो चलते हैं तो तूफ़ान उठा देते हैं

आपको अपनी मोहब्बत भी नही रास आती
हम तो नफरत को भी आंखों से लगा लेते hain

Thursday, January 15, 2009

या रब मोहब्बत को मेरी ऐसी अदा de


या रब मोहब्बत को मेरी ऐसी अदा दे
दीवाना जो कहते हैं उन्हें दीवाना बना दे

कुछ तो मेरी आहो फुगाँ का भी भरम रख
इस दिल की हकीकत को न अफसाना बना दे

दुश वार है अब दर्द से दिल का सही होना
तू दर्द को सहने का कोई पैमाना बना दे

तकदीर के मारों पे इतना तो करम कर
हर दस्ते परीशां को शाहाना बना दे

माजी का हो मातम ना हो आज के नाले
तू दर्दो आलम से मुझे अनजाना बना दे

आंखों में ग़म लबब पे गिला पआंव में छाले
अब राह की मंजिल darey जानाना बना दे

तुझ में यूँ सिमट आई खुदाई मेरे अल्लाह
वयिज़ तुझे देखे तो बुतखाना बना दे

गर हर्फे खता हूँ तो भुलाना मुझे बेहतर
ये इश्क कहीं मुझको तमाशा न बना दे

कुछ भी न मुझे याद हो तेरे नाम के सिवा
तू मुझको सनम ख़ुद से भी बेगाना बना दे