Sunday, June 15, 2008




फिर रुलाने की बात करते हैं

मुस्कुराने की बात करते हैं



दमभर में छोड़ जाते हैं

इक ज़माने की बात करते हैं



हाथ फूलों से कप कअपातेय हैं

गम उठाने की बात करते हैं



आशियाँ अब्र में झुलसते हैं

लौ जलाने की बात करते हैं



दिल में इक हूक सी हुयी बेदार

ये किसके आने की बात करते हैं



हमने दिल पेर फरेब खाए हैं

वो फसाने की बात करते हैं



बडे दिलकश अंधेरे हैं गम के

सुबह आने की बात करते हैं



दो क़दम साथ चल ना पाये हैं

लौट जाने की बात करते हैं



उम्र जाकिर तमाम हो भी चुकी

अबतो जाने की बात करते हैं

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