साथ कुछ दूर तो दिया होता
मुझ पे एहसान ही किया होता
प्यार तुमसे न गर किया होता
शायद कुछ और दिन जिया होता
दिल की कीमत अगर पता रहती
दिल न तुमको कभी दिया होता
ग़म इनायत ही कोई कम तो न थी
ग़म को रुसवा तो न किया होता
हयाते मुख्तसर और तवील तनहा राहें
ग़म को ही साथ कर दिया होता
बे ताल्लुक जिया नही जाता
कोई इल्जाम ही दिया होता
साथ तेरा तो खैर क्या मिलता
झूठा वादा ही कर दिया होता
तुम तो अब गैर बनके मिलते हो
कुछ तो पासे वफ़ा किया होता
वक्ते रुखसत ये मुरव्वत कैसी
मरना आसान कर दिया होता
सबके हिस्से में चाँद सूरज थे
टूटा तारा मुझे दिया होता