- चंद बोसीदा से लम्हों को निभाते कब तक
- मेरे हालात पे यूँ अश्क बहते कब ताक
- कब तक मेरी बर्बाद मोहब्बत को पनाहें देते
- दिल के उजडे हुए गुलशन को सजाते कब तक
- तुम ने achha ही किया पास ऐ वफ़ा तोड़ दिया
- मेरे जज्बों के जनाजों को उठाते कब तक
- वैसे भी मेरे दिल का कोई मोल तो न था
- तुम बचाते भी तो इसको बचाते कब तक
- मेरे वीरान अंधेरों से तुम्हें क्या मिलता
- अपनी आंखों में मेरा प्यार सजाते कब तक
- door तक राह में पत्थर ही नज़र आते थे
- तुम निभाते भी तो साथ निभाते कब तक
- अब एय्हेद केर चुके हैं देंगे नहीं सदाएं
- हम दुआओं के लिए हाथ उठाते कब tak
Friday, July 11, 2008
कब tak
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
itna pareshan hone ka nahi zakir bhai
ReplyDeletejo sath nibhate hai wo waqt ka intzar nahi karte