चाहे तन्हाई हो के महफिल हो, हो हरम या के हो वो मयखाना
मैं किसी सिम्त भी चला जाऊं, हर जगह तुमको साथ पाऊंगा
आबरू कुछ मोहब्बत की रहने दो, अश्क बनकर मुझे न बहने दो
मुझको आंखों में तुम छुपा रखो, खो गया तो न हाथ आऊंगा
यूँ shikaston के जेरे साए में, मुस्कुराना कोई मजाक नहीं
केह्कहों के पीछे क्या ग़म है, जब मिलोगे कभी सुनाऊंगा
तेरे दिल में तेरे ख्यालों में, तनहा रातों में और उजालों में
तुमको बेचैन केर रहूंगा मैं, सामने आऊंगा लौट जाऊँगा
इन अंधेरों की सरकशी देखो, फिर चले आए शिकस्ता पा होने
के जबके खूब मुझसे वाकिफ हैं, अब चिराग याद के जलाऊंगा
बुझती आवाज़ टूटे नग्मों से, चुभती तन्हाई सहमे रिश्तों से
बारहा तुमको सादआएं दी हैं, आ भी जाओ न फिर बुलाऊंगा
फूल मांगे थे खार पाये हैं, चांदनी में गमों के साए हैं
ज़ख्म क्या खूब मैं ने पाये हैं, अब न सपने कोई सजाऊंगा
सरे महफिल वो हाल पूछे हैं, और ये जिद के मैं कहूँ दिल की
दिल से निकली तो आह निकलेगी, अब सुना उन तो क्या सुनाऊंगा
No comments:
Post a Comment