Saturday, January 31, 2009

जहाँ को भूल जाना चाहता हूँ

जहाँ को भूल जाना चाहता हूँ
तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ

गुजारिश है ये तुमसे अर्ज़ सुन लो
मैं हाले दिल सुनना चाहता हूँ

इजाज़त दो इन्हें गुस्ताख कर लूँ
निगाहों को मिलाना चाहता हूँ

सिमट जाओ मेरे सीने में के मैं
तुम्हें सबसे छुपाना चाहता हूँ

करो जो बन पड़े मुझ पर सितम तुम
मैं ख़ुद को आजमाना चाहता हूँ

गरज ये के बहे जाते हैं आंसू
मैं जितना मुस्कुराना चाहता हूँ

कहीं ऐसा न हो के रूठ जाओ
ज़ख्म दिल के दिखाना चाहता हूँ

मनाया है तुम्हें हर बार मैं ने
मैं अब के रूठ जाना चाहता हूँ

बड़ी दिलकश हैं ये आँखें तुम्हारी
इन्ही में डूब जाना चाहता हूँ

सहारा दे भी दो बाहों का के मैं
जहाँ के गम भुलाना चाहता हूँ

गरेबा चाक जुबा पे नाम तेरा
तेरे कुचे में आना चाहता हूँ

सबब कोई नज़र आता नही है
मैं बस आंसू बहाना चाहता हूँ

2 comments:

  1. अक्सर ऐसा हो जाता है:

    सबब कोई नज़र आता नही है
    मैं बस आंसू बहाना चाहता हूँ


    -बहुत खूब कहा, जनाब!!

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  2. ji aksar aisa un hi logon ke saath hota hai jo emotional hote hain.
    meri emotions ko samjhne ka bohot bohot shukriya

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