उदासियों के हज़ार खंज्जर मेरे सीने में गढ़ चुके हैं
kखुशियों के देहेक्तेय पत्ते इस शजर से झढ़ चुके हैं
dum todtey हुए ख्वाबों की कसक है
बिखरे पडे हुए अरमान की खनक है
कज्लाई हुयी शामें हैं अंधियारे सवेरे
छाए हैं उदासी के बे हिस से अंधेरे
पलकों पे सजाये हूँ मैं अश्खों के नगीने
डूबे हैं साहिलों पे सभी मेरे सफीने
हिस्से में मेरे आई हैं नाकाम वफाएं
नाजां हैं फिर भी कर के सभी मुझसे जफ़ाएं
भीगी हुयी खुशी अत मुझको की गई
नाकर्दा गुनाहों की सज़ा मुझको दी गई
बख्शी गई मुझ ही को सभी लग्ज़िशें यहाँ
पूछो न किस तरह से लुटी क्वाहिस्हें यहाँ
मुझको मेरे खुलूस बर्बाद कर गए
दिल की वीरानियों को आबाद कर गए
इन का साया भी पडे तुम पर गवारा नही मुझे
इस लिए मैं ने हमदम पुकारा नही तुझे
अच्छा लिखा है-
ReplyDelete"इन का साया भी पडे तुम पर गवारा नही मुझे
इस लिए मैं ने हमदम पुकारा नही तुझे"
गुलाब की तरह ख़ूबसूरत
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चाँद, बादल और शाम