Wednesday, April 01, 2009
उदास रात में
उदास रात में,
चुपके से....
तसव्वुर ने तेरे दस्तक दी है
मैं जो वीरान अपनी आंखों में
बुझते सपने सजाये बैठा था
बेकसी की सितम जदा चीखें
अपने दिल में दबाये बैठा था
मुस्कुराहटों का मातम था
और मैं मुस्कुराये बैठा था
मैं ने दुनिया को दोस्त जाना था
मैं इसे आजमाए बैठा था
वक्त ने नोंच ली हँसी लअब्ब से
मैं के नज़रें झुकाए बैठा था
आह चल पाया न साथ दुनिया के
ख़ुद को भी आजमाए बैठा था
मतलबी दुनिया के झूटे रिश्तों से
अपना दामन जलाये बैठा था
मौत आ जाती के सुकून मिलता
कब से नज़रें बिछाये बैठा था
जिस उदासी से दूर रहता था
उसको ख़ुद में समाये बैठा था
जैसे सारे गुनाह मेरे थे
ऐसे कुछ सर झुकाए बैठा था
आसमानों से आग बख्शी गई
हाथ मैं फैलाये बैठा था
हाँ के भूल जाना लाजिम था
हाँ मैं तुमको भुलाये बैठा था
अब उदासी के ऐसे आलम में
जो तेरी याद चुपके से चली आई है
सामने मेरे खड़ी है ये अजनबी की तरह
ऐसा लगता ही नही इस से शनासाई है
सोचता हूँ के इसे दिल में बुला लेता हूँ
दो घड़ी के लिए फिर ख़ुद को सज़ा देता हूँ
मुस्कुरा लेता हूँ फिर अश्क बहने के लिए
नवाजिशेय हयात का कुछ और मज़ा लेता हूँ
पर पशेमान हूँ के मेरे दिल में बची
तेरी यादों तेरी बातों की जगह कोई नहीं
अब मेरे पास उदासी के घने साए हैं
हुस्न के शौख उजालों की जगह कोई नहीं
धुन्धलाये से नगमे हैं बोसीदा से वादे
दिल के मासूम फसानों की जगह कोई नहीं
मेरे पहलु से तुम इस याद को वापस ले लो
जिंदा रहने के बहानों की जगह कोई नहीं
Labels:
NAZM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सोचता हूँ के इसे दिल में बुला लेता हूँ
ReplyDeleteदो घड़ी के लिए फिर ख़ुद को सज़ा देता हूँ
मुस्कुरा लेता हूँ फिर अश्क बहने के लिए
नवाजिशेय हयात का कुछ और मज़ा लेता हूँ
bahut hi sunder bhav,andaze bayan lajawab badhai,aurblog ki baki rachana ye bhi khubsurat.
बढ़िया अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसोचता हूँ के इसे दिल में बुला लेता हूँ
ReplyDeleteदो घड़ी के लिए फिर ख़ुद को सज़ा देता हूँ
मुस्कुरा लेता हूँ फिर अश्क बहने के लिए
नवाजिशेय हयात का कुछ और मज़ा लेता हूँ
bahut sunder
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDelete