गो रात बोहोत बेकरार गुजरी है
गुज़र गई है मगर अश्कबार गुजरी है
सुलग के शोला ऐ ग़म राख भी नही होता
सबा चली है मगर सोग्वार गुजरी है
ग़मों के बोझ से हम भी दबे दबे से रहे
मिली खुशी तो बोहोत शर्मसार गुजरी है
ये किसके अश्क मेरी आँख में उतर आए
ये किसकी याद यहाँ बार बार गुजरी है
न जाने दिल को मेरे इंतज़ार किसका था
उम्मीद अबके दीवानावार गुजरी है
बडे ही सख्त मोहब्बत के लम्हे गुजरे हैं
बड़ी तवील हमारी दीवार गुजरी है
किसी भी तोर तो उसको रहम नही आया
गुलों को रोंदते अबके बहार गुजरी है
दम भर में सदियों के रिश्ते टूट गए
दिलों को चीरती कैसी दरार गुजरी है
क़दम क़दम उदासी क़दम क़दम तनहा
कसूर ऐसा न था जैसी के यार गुजरी है
बुझी बुझी सी चारागों में रौशनी भी न थी
सेहर यूँ गुजरी के जैसे उधार गुजरी है
जो ज़ख्म उभरे तो तन्हाईयों में डूब गया
मेरे लिए तो यही गमगुसार गुजरी है
सुलग के अश्क निगाहों में आग भरते हैं
तुम्हारी याद की जब जब फुहार गुजरी है
करार दिल को मेरे अब भी उसी नाम से है
अदा ऐ सख्ती ऐ जानां बेकार गुजरी है
اِتنی مایُوسی کیوں، بھائی زان ؟
ReplyDeleteचुनावी वक्त है फिर चली है इश्क की बातें।
ReplyDeleteभला लोगों का न होगा कई सरकार गुजरी है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
किसी भी तोर तो उसको रहम नही आया
ReplyDeleteगुलों को रोंदते अबके बहार गुजरी है
बहोत ख़ुब!!
बहुत उम्दा गज़ल है।बधाई।
ReplyDeleteaap sabhi doston ka bohot bohot shukriya meri hosla afzayi ke liye. bas meri dua hai ke aap sab ka pyar mujhey yun hi milta rahey.
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