Monday, April 27, 2009

बुझा गया वही जिसने दिए जलाये थे
चटख के टूट गए जो सिलसिले बनाये थे

चला था गर तो लगजिशें थीं क़दम बा क़दम
ज़रा रुका तो अंधेरे सिमट के आए थे

ये हम हैं जो पासे ज़माना निभा रहे
वगरना हमने सभी दोस्त आजमाए थे

बदलते रिश्तों से उम्मीद कोई क्या रखे
तारीकियों के हो गए हमसफ़र जो साए थे

बना है फिर से तमाशा मेरी मोहब्बत का
अभी तो पिछले तगाफुल न भूल पाए थे

वहीँ से इब्तेदा आंखों के भीगने की रही
तुम्हारे सामने दम भर जो मुस्कुराये थे

चला था उससे बोहोत दूर फ़ैसला कर के
रास्ते फिर उसी संगदिल पे लौट आए थे

दबी दबी सी कोई याद अब भी बाक़ी है
बुझे बुझे से हैं सपने जो जगमगाये थे

न दिल में दर्द था बाक़ी न आरजू में तड़प
मगर न उनको भुला के भी भूल पाये थे

अब इससे आगे मुझे क्या पता, कहाँ जाऊं
बस यहीं तक वो मेरे साथ आए थे

डुबो रहे हैं वही तूफ़ान मेरे सफिने को
निगाहे नाज़ में अक्सर जो झिलमिलाये थे

3 comments:

  1. वाह क्या बात है ...छा गए आप ...मुझे बहुत पसंद आई आपकी रचना ...

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. बहुत सुन्दर गज़ल है ।बधाई।

    बना है फिर से तमाशा मेरी मोहब्बत का
    अभी तो पिछले तगाफुल न भूल पाए थे

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  3. doston aapka bohot bohot shukriya !!

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