चंद बोसीदा से लम्हों को निभाते कब तक
मेरे हालात पे यूँ अश्क बहते कब ताक
कब तक मेरी बर्बाद मोहब्बत को पनाहें देते
दिल के उजडे हुए गुलशन को सजाते कब तक
तुम ने achha ही किया पास ऐ वफ़ा तोड़ दिया
मेरे जज्बों के जनाजों को उठाते कब तक
वैसे भी मेरे दिल का कोई मोल तो न था
तुम बचाते भी तो इसको बचाते कब तक
मेरे वीरान अंधेरों से तुम्हें क्या मिलता
अपनी आंखों में मेरा प्यार सजाते कब तक
door तक राह में पत्थर ही नज़र आते थे
तुम निभाते भी तो साथ निभाते कब तक
अब एय्हेद केर चुके हैं देंगे नहीं सदाएं
हम दुआओं के लिए हाथ उठाते कब tak