Monday, October 05, 2009
जबके तुमको रो चुका
जबके तुझको रो चुका दिल सुकून पाने को है
लौट कर के दर्द-ऐ-दिल फिर वही आने को है
बे-तहाशा याद के तूफ़ान थे उठा किए
अब पडे खामोश हैं जब नाखुदा आने को है
हर शिकस्ता मोड़ पर दिल के टुकडे चुन चुके
अब न जाने जिंदगी का क्या मकाम आने को है
कब तलक बे-रब्त्गी और बे-रुखी पे रोएँ हम
एक दिल अपना ही क्या हर सज़ा पाने को है
फिर उफ्फक पर दूर तक खामोशियाँ सी छाई हैं
आसमान से फिर कोई क्या सानेहा आने को है
उम्र भर इक घुटन के साथ है जीना पड़ा
साँस आई भी तो अब जब जिंदगी जाने को है
लिल्लाह मुझको छोड़ कर न जाईये रुक जाईये
बेकरारी को किसी सूरत करार आने को है
इस तरह मंसूब थे कुछ रौशनी के सिलसिले
अब तो ये आलम के हर इक ख्वाब जल जाने को है
फिर खड़ा हूँ दिल लिए इक बेवफा के सामने
फिर तमन्ना-ऐ-सुकून ख़ाक हो जाने को है
बू-ऐ-गुल में फिर महक तेरी पनाहों की सी है
वो पुराना वक्त क्या फिर से पलट आने को है
दो क़दम चल कर ना जाने क्यूँ ठहर जाता हूँ मैं
कौन है जो साथ मेरे दूर तक आने को है
आरजू गुस्ताख फिर होने लगी है आजकल
दिल शिकस्ता होके भी फिर दगा खाने को है
इस कमनसीबी का भला अब करें तो क्या करें
आरजू मुरझाने को है और घटा छाने को है
Wednesday, August 26, 2009
जो गुल निगाह में महके
जो गुल निगाह में महके वो खार हो रहे
साए भी रौशनी के तलबगार हो रहे
तुमने कभी भी हमपे निगाहे करम न की
कितने भी हम तुम्हारे तलबगार हो रहे
दर्द-ओ-आलम से आगे कुछ भी न मिल सका
दिल के मुआमले सब बेकार हो रहे
मुद्दत के बाद भी खिले तो खार ही खिले
कहने को बाग़-ऐ-हसरत गुलज़ार हो रहे
किन किन उदास रातों का मैं तज़करा करूँ
तारे तुम्हारे हिज्र में अंगार हो रहे
शोलों से नफरतों की इक दिल था बुझ गया
अब क्या जो उन्हें भी अगर प्यार हो रहे
क़ैद-ऐ-ख्याल-ऐ-यार से फिर छूट न सके
नज़रें मिलाके हम तो गुनेहगार हो रहे
बैठे हैं मुद्दतों से यही जुस्तजू किए
शायद के बेवफा का दीदार हो रहे
इक उन्स जिसको त्तोड़ कर तुम खुश रहे सदा
हम आज तक उसी में गिरफ्तार हो रहे
क्या इस सियाह रात की कोई सेहर नहीं
मुद्दत से रौशनी के आजार हो रहे
Friday, August 07, 2009
मुझको वीरान अंधेरों में....
मुझको वीरान अंधेरों में पिन्हाँ रहने दो
अपनी हमदर्दी-ओ-उल्फत की अदा रहने दो
बारहा मुझसे मेरा हाल न पूछो अब तुम
दर्द अब दे ही दिया है तो दवा रहने दो
हंस दिया भी तो मेरी आँख में आंसू होंगे
मेरी आंखों में उदासी का नशा रहने दो
तुम खुशी से हर इक गाम पे कलियाँ चुनना
मुझको जज्बों के जनाजों में दबा रहने दो
पूछो न किस तरह से गुजरी है शाम-ऐ-हिज्र
आबशारों को निगाहों में थमा रहने दो
अपना एहसास मेरी जान पराया न करो
इक मेरे पास भी जीने की वजह रहने दो
बैठ जाओ मेरे पास मुझ ही में खो कर
और सदियों तक यूँ ही वक्त रुका रहने दो
अपनी जुल्फें रुख-ऐ-रोशन से हटाना न अभी
कुछ घड़ी और ज़माने पे घटा रहने दो
तोड़ कर रस्म-ऐ-जहाँ बाँहों में मेरी आए हो
खूबसूरत है बोहोत ख्वाब सजा रहने दो
मेरी उल्फत की निगाहों का भरम तो रखो
दिल को इनाम-ऐ-इबादत का गुमा रहने दो
Tuesday, August 04, 2009
कहो तो जिंदगी तुम पर लुटा दूँ
घिरा हूँ मैं शिकस्ता कोशिशों में
बढे जाते हैं अब ग़म के अंधेरे
बड़े ही सख्त ये लम्हे गए हैं
परस्तिश के लिए तुमको चुना है
न हो जिन रास्तों पे साथ तेरा
मैं मर जाऊं अगर जीना हो तुमबिन
नही होते हो जब तुम पास मेरे
अगर तुम साथ दो राह-ऐ-वफ़ा में
Wednesday, June 24, 2009
नाला-ऐ-दिल बोहोत अदना है गो फसाने में
ये दो घड़ी की जो मुश्किल थी टटल गई होती
मैं बारिशों से भी अश्कों की न बचा पाया
किया था तुम पे भरोसा मगर तुमने
बुरा हुआ जो इस दिल पे मुश्किलें गुजरीं
मैं लम्स लम्स पिघलता रहा मानिंद-ऐ-शमा
परिस्तिशों का हमारी यहाँ सिला ये मिला
चले भी आओ के तुम बिन कोई कमी सी है
Sunday, June 14, 2009
हमको कुछ जुर्म-ऐ-मोहब्बत का भरम रखना था
अपनी मायूस इबादत का भरम रखना था
इस लिए हमने तुझे बज्म में सजदे न किए
दुनिया वालों की शिकायत का भरम रखना था
हम ही क्या दर्द-ऐ-जुरायत को निभाते जाएँ
कुछ तुम्हें भी तो मोहब्बत का भरम रखना था
तेरे बख्शे हुए अश्कों से सजा ली रातें
हमनफस हमको इनायत का भरम रखना था
बेवफा हमने तुझे याद किया है पहरों
दिल से मंसूब रिवायत का भरम रखना था
कोई शिकवा भी नही कोई शिकायत भी नही
तुमको लाचारी-ऐ-उल्फत का भरम रखना था
अपनी मांगी तुम्हें सार्री दुआएं दे दी
इस से जायेद क्या रफाकत का भरम रखना था
फूल चाहे थे हमें खार मिले हैं तुमसे
इक ज़रा तो मेरी चाहत का भरम रखना था
हमने तन्हाई में तेरी खुशबू को बिखेरे रखा
अपने एहसास की फितरत का भरम रखना था
चंद बचे रिश्तों को भी दुनिया से तो बख्शा न गया
कुछ इन्हें भी तो अदावत का भरम रखना था
हमने हर लफ्ज़ को आंखों से बोहोत चूमा है
तेरे हाथों की इबारत का भरम रखना था
मुझको बख्शा तो बोहोत, ग़म ही सही !
कुछ खुदा को भी सखावत का भरम रखना था
Thursday, June 04, 2009
अब तुम्हें दिल से भुलाने की दुआ करता हूँ
अब तुम्हें दिल से भुलाने की दुआ करता हूँ
दरअसल मौत के आने की दुआ करता हूँ
अपनी रातों में उदासी के अंधेरे भर के
तेरी रातों में उजाले की दुआ करता हूँ
तुम परीशां न हो हालत-ऐ-हस्ती से मेरी
अपनी हस्ती को मिटाने की दुआ करता हूँ
अब न उल्फत के तकाजों का कोई मातम होगा
दिल को मैं आग लगाने की दुआ करता हूँ
एक एहसास तेरा मुझ में जो रोशन सा रहा
इस पे अब बर्क गिरने की दुआ करता हूँ
मेरी बर्बाद मोहब्बत का तमाशा न बने
ख़ाक में ख़ुद को मिलने की दुआ करता हूँ
तस्कीन-ऐ-दिल-ऐ-बर्बाद की अब आरजू कहाँ
अब तो में दर्द उठाने की दुआ करता हूँ
अब तमन्नाओं को मैं गुस्ताख न होने दूँगा
खून मैं इनका बहने की दुआ करता हूँ
अब न छठ पाएं कभी ग़म के अंधेरे मेरे
हर सितारे को बुझाने की दुआ करता हूँ
आखरी बार मेरी अर्ज़-ऐ-वफ़ा भी सुन ले
फिर मैं आवाज़ दबाने की दुआ करता हूँ
मुझको तन्हाई मिले कोई भी हमदम न रहे
तुझको मैं सारे ज़माने की दुआ करता हूँ
गरचे बाक़ी थे कई तिनके आशियाने के
आंधियां अब मैं उठाने की दुआ करता हूँ
फिर उठे हैं तुझे पाने को मेरे दस्त-ऐ-तलब
फिर तुझे भूल ना पाने की दुआ करता हूँ
Sunday, May 10, 2009
गर हैं नही कुबूल तो लौटा दो मेरे सजदे
तुमको आवाज़ बताओ मैं कहाँ तक देता
मैंने रातों के अंधेरों में पुकारा तुमको
मेरी उम्मीद-ऐ-वफ़ा, शान-ऐ-इबादत तुम थे
मैंने सीने से तेरे ग़म को लगाये रखा
तल्खी-ऐ-नाकामी-ऐ-हयात की शिकायत कभी न की
काँप उठे हैं अब तो मेरे दस्त-ऐ-तलब
गर हैं नही कुबूल तो लौटा दो मेरे सजदे
Wednesday, May 06, 2009
निगाह में रह के भी मुझसे जुदा जुदा सा रहा
वो एक शख्स जो दिल में बसा बसा सा रहा
मैं उसके इश्क में दुनिया को भूल बैठा हूँ
मिला वो जब भी तो मुझसे खफा खफा सा रहा
तुम्हारे बाद खुशी कोई रास आ न सकी
हर इक खुशी में ज़रा ग़म घुला घुला सा रहा
हँसी की चाह में इतने फरेब खाए के
जो हंस दिया भी तो चेहरा बुझा बुझा सा रहा
मिले कुछ इस तरह इक लफ्ज़ भी न कह पाए
कोई तूफ़ान दिलों में उठा उठा सा रहा
वो मिट गए सपने जो मैंने देखे थे
बस एक नाम दिल पे लिखा लिखा सा रहा
जहाँ में रंग बोहोत खुशगवार थे लेकिन
जहाँ में रंग वफ़ा का धुला धुला सा रहा
तुम्हारे बाद किसी शे पे न बहार आई
हर एक दिल हर एक जज्बा दुखा दुखा सा रहा
न था नसीब के तुम तक कभी पोहोंच पाते
क़दम बढाये तो रस्ता रुका रुका सा रहा
मैं भला गुलशन को चाके दिल का क्या इल्जाम दूँ
गुलों में अक्स तुम्हारा ज़रा ज़रा सा रहा
कोंपलें फूटीं के दिल चटका किसे मालूम है
हरेक दर्द से दिल ये भरा भरा सा रहा
तुम्हारे बख्शे मोहब्बत के ख्वाब उफ़ तोबा
तमाम उम्र कोई शख्स जगा जगा सा रहा
तमाम उम्र हमसा कोई मिला ही नहीं
हर एक
चेहरे पे चेहरा लगा लगा सा रहा
Monday, April 27, 2009
चला था गर तो लगजिशें थीं क़दम बा क़दम
ये हम हैं जो पासे ज़माना निभा रहे
बदलते रिश्तों से उम्मीद कोई क्या रखे
बना है फिर से तमाशा मेरी मोहब्बत का
वहीँ से इब्तेदा आंखों के भीगने की रही
चला था उससे बोहोत दूर फ़ैसला कर के
दबी दबी सी कोई याद अब भी बाक़ी है
न दिल में दर्द था बाक़ी न आरजू में तड़प
अब इससे आगे मुझे क्या पता, कहाँ जाऊं
डुबो रहे हैं वही तूफ़ान मेरे सफिने को
Thursday, April 16, 2009
गो रात बोहोत बेकरार गुजरी है
सुलग के शोला ऐ ग़म राख भी नही होता
ग़मों के बोझ से हम भी दबे दबे से रहे
ये किसके अश्क मेरी आँख में उतर आए
न जाने दिल को मेरे इंतज़ार किसका था
बडे ही सख्त मोहब्बत के लम्हे गुजरे हैं
किसी भी तोर तो उसको रहम नही आया
दम भर में सदियों के रिश्ते टूट गए
क़दम क़दम उदासी क़दम क़दम तनहा
बुझी बुझी सी चारागों में रौशनी भी न थी
जो ज़ख्म उभरे तो तन्हाईयों में डूब गया
सुलग के अश्क निगाहों में आग भरते हैं
करार दिल को मेरे अब भी उसी नाम से है
Friday, April 10, 2009
एक जहाँ ऐसा मोहब्बत का....
दिल की गहरायी में एक नाम लिखा है तेरा
तू जो मिल जाए तो तकदीर पे कुरबा जाऊं
इतना आसान भी तेरे हिज्र में जीना न रहा
जानता हूँ के तुम्हें मुझसे शिकायत है बोहोत
कुछ आहो फुगआने ग़म मेरी ज़िन्दगी के हैं
वरना तो कोई बात नही जिसका गिला हो
यादों से भला ख़ुद को कहाँ तक मैं संभालूं
चाहे हालात की अब कोई भी सख्ती गुजरे
यां तो एक लम्हा तेरी आंखों से सूरत न ढली
और किसी ग़म पे मेरे कोई भी ऊँगली न उठी
वरना दुनिया में बताओ के क्या कुछ नही होता
Wednesday, April 01, 2009
उदास रात में
उदास रात में,
चुपके से....
तसव्वुर ने तेरे दस्तक दी है
मैं जो वीरान अपनी आंखों में
बुझते सपने सजाये बैठा था
बेकसी की सितम जदा चीखें
अपने दिल में दबाये बैठा था
मुस्कुराहटों का मातम था
और मैं मुस्कुराये बैठा था
मैं ने दुनिया को दोस्त जाना था
मैं इसे आजमाए बैठा था
वक्त ने नोंच ली हँसी लअब्ब से
मैं के नज़रें झुकाए बैठा था
आह चल पाया न साथ दुनिया के
ख़ुद को भी आजमाए बैठा था
मतलबी दुनिया के झूटे रिश्तों से
अपना दामन जलाये बैठा था
मौत आ जाती के सुकून मिलता
कब से नज़रें बिछाये बैठा था
जिस उदासी से दूर रहता था
उसको ख़ुद में समाये बैठा था
जैसे सारे गुनाह मेरे थे
ऐसे कुछ सर झुकाए बैठा था
आसमानों से आग बख्शी गई
हाथ मैं फैलाये बैठा था
हाँ के भूल जाना लाजिम था
हाँ मैं तुमको भुलाये बैठा था
अब उदासी के ऐसे आलम में
जो तेरी याद चुपके से चली आई है
सामने मेरे खड़ी है ये अजनबी की तरह
ऐसा लगता ही नही इस से शनासाई है
सोचता हूँ के इसे दिल में बुला लेता हूँ
दो घड़ी के लिए फिर ख़ुद को सज़ा देता हूँ
मुस्कुरा लेता हूँ फिर अश्क बहने के लिए
नवाजिशेय हयात का कुछ और मज़ा लेता हूँ
पर पशेमान हूँ के मेरे दिल में बची
तेरी यादों तेरी बातों की जगह कोई नहीं
अब मेरे पास उदासी के घने साए हैं
हुस्न के शौख उजालों की जगह कोई नहीं
धुन्धलाये से नगमे हैं बोसीदा से वादे
दिल के मासूम फसानों की जगह कोई नहीं
मेरे पहलु से तुम इस याद को वापस ले लो
जिंदा रहने के बहानों की जगह कोई नहीं
Thursday, March 26, 2009
साथ कुछ दूर तो दिया होता....
Sunday, February 22, 2009
थमे थमे से इस वक्त से.....
इस वक्त जबके तुम भी नही
कोई आरजू नही, कोई जुस्तुजू नही
न तो कुर्बतें हैं न केहकहे
कोई दोस्त,दुश्मन, अदू नही
खड़ा उस जगह पे हूँ जहाँ
जो मैं चाहूँ तो ख़ुद को मिलूं नही
न तो दिल ये मेरा उदास है
न किसी के आने की आस है
न तो मयकशी में है दिलकशी
न लबों पे मेरे ही प्यास है
न तो याद मुझको रहा कोई
न किसी को याद मैं आ सका
न तड़प रही न कसक रही
न मैं अश्क कोई बहा सका
ये बड़ा अजीब सा दौर है
मैं, मैं नही कोई और है
यहाँ बेजुबान हैं आहो करब
खामोशियों का शोर है
यहाँ वक्त अब ये ठहर गया
जो गुज़र गया वो गुज़र गया
ज़रा देख मुझको टटोल कर
मैं हयात हूँ के मर गया
कोई एहसान है जो किए जाता हूँ
बस के जिंदा हूँ जीये जाता हूँ
थमे थमे से इस वक्त से...
बस इतना पूछना चाहता हूँ मैं
गुज़र गई है जब ये जिंदगी यूँ ही
तो ये वक्त क्यूँ थमा है....
गुज़र क्यूँ नही जाता.........
Sunday, February 15, 2009
बोहोत रोयेंगे अपने साथ तुमको भी रुलायेंगे
लगे है ज़ब्त करने की क़सम अब टूट जायेगी
दीवाने मर ही जायेंगे जो न आंसू बहायेंगे
हुआ क्या जो वफ़ा का भी किसी ने पास न रखा
हमीं तो हैं जो हर वादा मोहब्बत का निभाएंगे
कभी बेबात रो दोगे कभी तुम मुस्कुराओगे
तुम्हें अक्सर मेरे गुजरे ज़माने याद आयेंगे
के हमने जिंदगी को अब तुम्हारे हाल पे छोड़ा
कहोगे रो पड़ेंगे और कहोगे मुस्कुराएँगे
मोहब्बत का जूनून का कोई भी अब इम्तहान गुज़रे
हम अपने दिल से तेरी याद न कोई मिटायेंगे
ज़माने में तुम्ही तो हो जिसे बस हमने चाहा है
अगर हम मर भी जाएँ तो भी हम तुमको ही चाहेंगे
न जाने कितने तूफ़ान रोज़ ही आंखों से ढलते हैं
समुन्दर क्या हमारे होसलों को आजमाएँगे
मोहब्बत के तराने तुमको गर यूँही गिरां गुज़रे
वफ़ा के साज़ पे न गीत कोई गुनगुनाएँगे
बिखरते जा रहे तन्हाईओं में हम तुम्हारे बिन
जुदा तुमसे अगर यूँही रहे तो मर ही जायेंगे
Thursday, February 12, 2009
main ने
दुनिया के इस बाज़ार में,
कई बार कोशिशें ki,
के अपनी जात को नीलाम कर के देखूं--
मैं ने हर बाम पर,
अपनी बोली ख़ुद लगायी
दोस्तों को बुलाया
दुश्मनों को दिखाया
फन मेरा मगर
कोई काम न अया
हर आदमी ने मुझको
बेमोल ही बताया
बेमोल फन था मेरा
बेमोल ख्वाहिशे थी
और फिर एक दिन जब मुझे
ये एहसास हो रहा था
के मैं
बेमोल हूँ
तो अबस ही मैं ने
शिकस्ता और तमन्नाई आंखों से
तेरी जानिब देखा तो मैं
अनमोल हो गया
क्यूंकि
तेरी आंखों में
जो दो मोत्ती चमकते हुये
मेरे नाम के थे
मेरी कीमत वही तो थी
Monday, February 09, 2009
उदासियों के हज़ार खंज्जर मेरे सीने में......
उदासियों के हज़ार खंज्जर मेरे सीने में गढ़ चुके हैं
kखुशियों के देहेक्तेय पत्ते इस शजर से झढ़ चुके हैं
dum todtey हुए ख्वाबों की कसक है
बिखरे पडे हुए अरमान की खनक है
कज्लाई हुयी शामें हैं अंधियारे सवेरे
छाए हैं उदासी के बे हिस से अंधेरे
पलकों पे सजाये हूँ मैं अश्खों के नगीने
डूबे हैं साहिलों पे सभी मेरे सफीने
हिस्से में मेरे आई हैं नाकाम वफाएं
नाजां हैं फिर भी कर के सभी मुझसे जफ़ाएं
भीगी हुयी खुशी अत मुझको की गई
नाकर्दा गुनाहों की सज़ा मुझको दी गई
बख्शी गई मुझ ही को सभी लग्ज़िशें यहाँ
पूछो न किस तरह से लुटी क्वाहिस्हें यहाँ
मुझको मेरे खुलूस बर्बाद कर गए
दिल की वीरानियों को आबाद कर गए
इन का साया भी पडे तुम पर गवारा नही मुझे
इस लिए मैं ने हमदम पुकारा नही तुझे
Saturday, January 31, 2009
जहाँ को भूल जाना चाहता हूँ
तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ
गुजारिश है ये तुमसे अर्ज़ सुन लो
मैं हाले दिल सुनना चाहता हूँ
इजाज़त दो इन्हें गुस्ताख कर लूँ
निगाहों को मिलाना चाहता हूँ
सिमट जाओ मेरे सीने में के मैं
तुम्हें सबसे छुपाना चाहता हूँ
करो जो बन पड़े मुझ पर सितम तुम
मैं ख़ुद को आजमाना चाहता हूँ
गरज ये के बहे जाते हैं आंसू
मैं जितना मुस्कुराना चाहता हूँ
कहीं ऐसा न हो के रूठ जाओ
ज़ख्म दिल के दिखाना चाहता हूँ
मनाया है तुम्हें हर बार मैं ने
मैं अब के रूठ जाना चाहता हूँ
बड़ी दिलकश हैं ये आँखें तुम्हारी
इन्ही में डूब जाना चाहता हूँ
सहारा दे भी दो बाहों का के मैं
जहाँ के गम भुलाना चाहता हूँ
गरेबा चाक जुबा पे नाम तेरा
तेरे कुचे में आना चाहता हूँ
सबब कोई नज़र आता नही है
मैं बस आंसू बहाना चाहता हूँ
Wednesday, January 21, 2009
हम टू हर बार मोहब्बत से सदा देते हैं
आप सुनते हैं और सुनके भुला देते हैं
ऐसे चुभते हैं तेरी याद के खंजर मुझको
भूल जाऊं जो कभी याद दिला देते हैं
ज़ख्म खाते हैं तेरी शोख नीगाही से बोहोत
खूबसूरत से कई ख्वाब सजा लेते हैं
तोड़ देते हैं हर एक मोड़ पे दील मेरा
आप क्या खूब वफाओं का सिला देते हैं
दोस्ती को कोई उन्वान तो देना होगा
रंग कुछ इस पे मोहब्बत का चढा देते हैं
तल्खी ऐ रंज ऐ मोहब्बत से परीशां होकर
मेरे आंसू तुझे हंसने की दुआ देते हैं
हाथ आता नही कुछ भी तो अंधेरों के सीवा
क्यूँ सरे शाम यूँ ही दील को जला लेते हैं
हम तो हर बार मोहब्बत का गुमा करते हैं
वो हर एक बार मोहब्बत से दगा देते हैं
दम भर को ठहरना मेरी फितरत न समझना
हम जो चलते हैं तो तूफ़ान उठा देते हैं
आपको अपनी मोहब्बत भी नही रास आती
हम तो नफरत को भी आंखों से लगा लेते hain
Thursday, January 15, 2009
या रब मोहब्बत को मेरी ऐसी अदा de
अब राह की मंजिल darey जानाना बना दे