Sunday, December 21, 2008

वो चंद लम्हे

वो चंद लम्हे जो किस्मत ने मेहेरबा हो कर
मेरे दमन में मोहब्बत से मुझे बख्शे थे
वक्त ने जब किसी शाम यूँ करवट ली थी
तेरे गेसू मेरे शानो पे कभी बिखरे थे
वो सुबहो जब तेरा हाथ था मेरे हाथों में
और अंधेरे भी उदासी के वहां धुंधले थे
दूर तक राह में खिलती हुई थी खुशियाँ
फूल राहों पे बड़ी दूर तलक बिखरे थे
वादियों में तेरी आवाज़ की झंकारें थीं
तेरे होटों के तबस्सुम से सभी निखरे थे
वो हसीं रात के जब चाँद भी शरमाया था
उन निगाहों ने सितारों को नफस बख्शे थे
बैठ केर पेड तले घंटों वो बातें करना
कितने अफ़साने फिजाओं में वहां बिखरे थे
झूम के बरसे थे मोहब्बत भरे बदल हम पर
खुशनुमा रंग वफाओं के वहां बिखरे थे
और फिर ये हुआ के चलते चलते
रास्ते मुर गए तुम कहीं खो गए
मैं अकेला भटकता हूँ अब भी वहीँ
मुझको लगता नहीं हम जुदा हो गए
मैं सुबहो शाम उन्ही लम्हों में जी लेता हूँ
जाने वो लम्हे तुम्हे याद भी हैं या के नहीं

Thursday, December 11, 2008

टूटे रिश्तों का क्या करूँगा मैं


टूटे रिश्तों का क्या करूँगा मैं, किस तरह तुमसे दूर जाऊँगा
तुम्हारी याद के सहारे जिंदा हूँ, तुम्हारी याद में मर भी जाऊँगा

चाहे तन्हाई हो के महफिल हो, हो हरम या के हो वो मयखाना
मैं किसी सिम्त भी चला जाऊं, हर जगह तुमको साथ पाऊंगा

आबरू कुछ मोहब्बत की रहने दो, अश्क बनकर मुझे न बहने दो
मुझको आंखों में तुम छुपा रखो, खो गया तो न हाथ आऊंगा

यूँ shikaston के जेरे साए में, मुस्कुराना कोई मजाक नहीं
केह्कहों के पीछे क्या ग़म है, जब मिलोगे कभी सुनाऊंगा

तेरे दिल में तेरे ख्यालों में, तनहा रातों में और उजालों में
तुमको बेचैन केर रहूंगा मैं, सामने आऊंगा लौट जाऊँगा

इन अंधेरों की सरकशी देखो, फिर चले आए शिकस्ता पा होने
के जबके खूब मुझसे वाकिफ हैं, अब चिराग याद के जलाऊंगा

बुझती आवाज़ टूटे नग्मों से, चुभती तन्हाई सहमे रिश्तों से
बारहा तुमको सादआएं दी हैं, आ भी जाओ न फिर बुलाऊंगा

फूल मांगे थे खार पाये हैं, चांदनी में गमों के साए हैं
ज़ख्म क्या खूब मैं ने पाये हैं, अब न सपने कोई सजाऊंगा

सरे महफिल वो हाल पूछे हैं, और ये जिद के मैं कहूँ दिल की
दिल से निकली तो आह निकलेगी, अब सुना उन तो क्या सुनाऊंगा