Wednesday, June 24, 2009

नाला-ऐ-दिल बोहोत अदना है गो फसाने में


नाल-ऐ-दिल बोहोत अदना है गो फसाने में
हमको इक उम्र लगेगी तुम्हें सुनाने में

क़दम क़दम पे बोहोत दिल को अज़ीयातें दी हैं
रहे हैं फिर भी शिकस्ता तुम्हें भुलाने में

ये दो घड़ी की जो मुश्किल थी टटल गई होती
ज़रा सी देर न की तुमने भूल जाने में

मैं बारिशों से भी अश्कों की न बचा पाया
फलक को जिद सी रही आशियाँ जलाने में

किया था तुम पे भरोसा मगर तुमने
कोई कसर न उठाई है दिल दुखाने में

बुरा हुआ जो इस दिल पे मुश्किलें गुजरीं
गँवाए हमने सभी दोस्त आजमाने

मैं लम्स लम्स पिघलता रहा मानिंद-ऐ-शमा
मिटा के रख दिया खुदको वफ़ा निभाने में

परिस्तिशों का हमारी यहाँ सिला ये मिला
तमाशा बन गए संगदिल से दिल लगाने में

चले भी आओ के तुम बिन कोई कमी सी है
तुम्ही दो ढूंढता रहता है दिल ज़माने में

Sunday, June 14, 2009

हमको कुछ जुर्म-ऐ-मोहब्बत का भरम रखना था

हमको कुछ जुर्म-ऐ-मोहब्बत का भरम रखना था
अपनी मायूस इबादत का भरम रखना था

इस लिए हमने तुझे बज्म में सजदे न किए
दुनिया वालों की शिकायत का भरम रखना था

हम ही क्या दर्द-ऐ-जुरायत को निभाते जाएँ
कुछ तुम्हें भी तो मोहब्बत का भरम रखना था

तेरे बख्शे हुए अश्कों से सजा ली रातें
हमनफस हमको इनायत का भरम रखना था

बेवफा हमने तुझे याद किया है पहरों
दिल से मंसूब रिवायत का भरम रखना था

कोई शिकवा भी नही कोई शिकायत भी नही
तुमको लाचारी-ऐ-उल्फत का भरम रखना था

अपनी मांगी तुम्हें सार्री दुआएं दे दी
इस से जायेद क्या रफाकत का भरम रखना था

फूल चाहे थे हमें खार मिले हैं तुमसे
इक ज़रा तो मेरी चाहत का भरम रखना था

हमने तन्हाई में तेरी खुशबू को बिखेरे रखा
अपने एहसास की फितरत का भरम रखना था

चंद बचे रिश्तों को भी दुनिया से तो बख्शा न गया
कुछ इन्हें भी तो अदावत का भरम रखना था

हमने हर लफ्ज़ को आंखों से बोहोत चूमा है
तेरे हाथों की इबारत का भरम रखना था

मुझको बख्शा तो बोहोत, ग़म ही सही !
कुछ खुदा को भी सखावत का भरम रखना था

Thursday, June 04, 2009

अब तुम्हें दिल से भुलाने की दुआ करता हूँ



अब तुम्हें दिल से भुलाने की दुआ करता हूँ
दरअसल मौत के आने की दुआ करता हूँ

अपनी रातों में उदासी के अंधेरे भर के
तेरी रातों में उजाले की दुआ करता हूँ

तुम परीशां न हो हालत-ऐ-हस्ती से मेरी
अपनी हस्ती को मिटाने की दुआ करता हूँ

अब न उल्फत के तकाजों का कोई मातम होगा
दिल को मैं आग लगाने की दुआ करता हूँ

एक एहसास तेरा मुझ में जो रोशन सा रहा
इस पे अब बर्क गिरने की दुआ करता हूँ

मेरी बर्बाद मोहब्बत का तमाशा न बने
ख़ाक में ख़ुद को मिलने की दुआ करता हूँ

तस्कीन-ऐ-दिल-ऐ-बर्बाद की अब आरजू कहाँ
अब तो में दर्द उठाने की दुआ करता हूँ

अब तमन्नाओं को मैं गुस्ताख न होने दूँगा
खून मैं इनका बहने की दुआ करता हूँ

अब न छठ पाएं कभी ग़म के अंधेरे मेरे
हर सितारे को बुझाने की दुआ करता हूँ

आखरी बार मेरी अर्ज़-ऐ-वफ़ा भी सुन ले
फिर मैं आवाज़ दबाने की दुआ करता हूँ

मुझको तन्हाई मिले कोई भी हमदम न रहे
तुझको मैं सारे ज़माने की दुआ करता हूँ

गरचे बाक़ी थे कई तिनके आशियाने के
आंधियां अब मैं उठाने की दुआ करता हूँ

फिर उठे हैं तुझे पाने को मेरे दस्त-ऐ-तलब
फिर तुझे भूल ना पाने की दुआ करता हूँ