Wednesday, May 06, 2009

निगाह में रह के भी मुझसे जुदा जुदा सा रहा

निगाह में रह के भी मुझसे जुदा जुदा सा रहा
वो एक शख्स जो दिल में बसा बसा सा रहा

मैं उसके इश्क में दुनिया को भूल बैठा हूँ
मिला वो जब भी तो मुझसे खफा खफा सा रहा

तुम्हारे बाद खुशी कोई रास आ न सकी
हर इक खुशी में ज़रा ग़म घुला घुला सा रहा

हँसी की चाह में इतने फरेब खाए के
जो हंस दिया भी तो चेहरा बुझा बुझा सा रहा

मिले कुछ इस तरह इक लफ्ज़ भी न कह पाए
कोई तूफ़ान दिलों में उठा उठा सा रहा

वो मिट गए सपने जो मैंने देखे थे
बस एक नाम दिल पे लिखा लिखा सा रहा

जहाँ में रंग बोहोत खुशगवार थे लेकिन
जहाँ में रंग वफ़ा का धुला धुला सा रहा

तुम्हारे बाद किसी शे पे न बहार आई
हर एक दिल हर एक जज्बा दुखा दुखा सा रहा

न था नसीब के तुम तक कभी पोहोंच पाते
क़दम बढाये तो रस्ता रुका रुका सा रहा

मैं भला गुलशन को चाके दिल का क्या इल्जाम दूँ
गुलों में अक्स तुम्हारा ज़रा ज़रा सा रहा

कोंपलें फूटीं के दिल चटका किसे मालूम है
हरेक दर्द से दिल ये भरा भरा सा रहा

तुम्हारे बख्शे मोहब्बत के ख्वाब उफ़ तोबा
तमाम उम्र कोई शख्स जगा जगा सा रहा

तमाम उम्र हमसा कोई मिला ही नहीं
हर एक

चेहरे पे चेहरा लगा लगा सा रहा

3 comments:

  1. तुम्हारे बख्शे मोहब्बत के ख्वाब उफ़ तोबा
    तमाम उम्र कोई शख्स जगा जगा सा रहा

    -बहुत उम्दा!!

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  2. कोंपलें फूटीं के दिल चटका किसे मालूम है
    हरेक दर्द से दिल ये भरा भरा सा रहा

    तुम्हारे बख्शे मोहब्बत के ख्वाब उफ़ तोबा
    तमाम उम्र कोई शख्स जगा जगा सा रहा
    khoobsurat

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  3. हँसी की चाह में इतने फरेब खाए के
    जो हंस दिया भी तो चेहरा बुझा बुझा सा रहा
    वाह...बेहतरीन ग़ज़ल...थोडी सी लम्बी ज्यादा है बस...बाकि सारे शेर मुकम्मल और खूबसूरत हैं...दाद कबूल कीजिये..
    नीरज

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