Thursday, June 04, 2009

अब तुम्हें दिल से भुलाने की दुआ करता हूँ



अब तुम्हें दिल से भुलाने की दुआ करता हूँ
दरअसल मौत के आने की दुआ करता हूँ

अपनी रातों में उदासी के अंधेरे भर के
तेरी रातों में उजाले की दुआ करता हूँ

तुम परीशां न हो हालत-ऐ-हस्ती से मेरी
अपनी हस्ती को मिटाने की दुआ करता हूँ

अब न उल्फत के तकाजों का कोई मातम होगा
दिल को मैं आग लगाने की दुआ करता हूँ

एक एहसास तेरा मुझ में जो रोशन सा रहा
इस पे अब बर्क गिरने की दुआ करता हूँ

मेरी बर्बाद मोहब्बत का तमाशा न बने
ख़ाक में ख़ुद को मिलने की दुआ करता हूँ

तस्कीन-ऐ-दिल-ऐ-बर्बाद की अब आरजू कहाँ
अब तो में दर्द उठाने की दुआ करता हूँ

अब तमन्नाओं को मैं गुस्ताख न होने दूँगा
खून मैं इनका बहने की दुआ करता हूँ

अब न छठ पाएं कभी ग़म के अंधेरे मेरे
हर सितारे को बुझाने की दुआ करता हूँ

आखरी बार मेरी अर्ज़-ऐ-वफ़ा भी सुन ले
फिर मैं आवाज़ दबाने की दुआ करता हूँ

मुझको तन्हाई मिले कोई भी हमदम न रहे
तुझको मैं सारे ज़माने की दुआ करता हूँ

गरचे बाक़ी थे कई तिनके आशियाने के
आंधियां अब मैं उठाने की दुआ करता हूँ

फिर उठे हैं तुझे पाने को मेरे दस्त-ऐ-तलब
फिर तुझे भूल ना पाने की दुआ करता हूँ

4 comments:

  1. अपनी रातों में उदासी के अंधेरे भर के
    तेरी रातों में उजाले की दुआ करता हूँ

    बहुत खूब। गजब का समर्पण-भाव।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. और मैं दुआ करता हूं कि आपकी दुआ में असर न हो। क्‍योंकि इसी बहाने इतन बेहतरीन रचनाएं जो पढने को मिलती रहेंगी।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  3. अपनी रातों में उदासी के अंधेरे भर के
    तेरी रातों में उजाले की दुआ करता हूँ

    बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
    बहुत बेहतरीन गजल है
    पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    वीनस केसरी

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  4. shukrguzaar hoon aap sabhi hazraat ka jo meri kaawishon ko padhtey hain aur unhein sarhatey hain. umeed kerta hoon aur dua kerta hoon ke aap sabhi ka pyar mujhe yun hi milta rahega.

    Regards

    Zakirr

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