Wednesday, June 24, 2009

नाला-ऐ-दिल बोहोत अदना है गो फसाने में


नाल-ऐ-दिल बोहोत अदना है गो फसाने में
हमको इक उम्र लगेगी तुम्हें सुनाने में

क़दम क़दम पे बोहोत दिल को अज़ीयातें दी हैं
रहे हैं फिर भी शिकस्ता तुम्हें भुलाने में

ये दो घड़ी की जो मुश्किल थी टटल गई होती
ज़रा सी देर न की तुमने भूल जाने में

मैं बारिशों से भी अश्कों की न बचा पाया
फलक को जिद सी रही आशियाँ जलाने में

किया था तुम पे भरोसा मगर तुमने
कोई कसर न उठाई है दिल दुखाने में

बुरा हुआ जो इस दिल पे मुश्किलें गुजरीं
गँवाए हमने सभी दोस्त आजमाने

मैं लम्स लम्स पिघलता रहा मानिंद-ऐ-शमा
मिटा के रख दिया खुदको वफ़ा निभाने में

परिस्तिशों का हमारी यहाँ सिला ये मिला
तमाशा बन गए संगदिल से दिल लगाने में

चले भी आओ के तुम बिन कोई कमी सी है
तुम्ही दो ढूंढता रहता है दिल ज़माने में

8 comments:

  1. चले भी आओ के तुम बिन कोई कमी सी है
    तुम्ही को ढूंढता रहता है दिल ज़माने में

    bahut hi najuk ehasaas ......jo dil ko choo gayi .....karib bhi hai dil ke

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  2. Bahut Badhiya Zakir Bhai, Ekdum Dil Ko Chhoo Gayi......

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  3. बहुत बढिया गज़ल है बधाई।

    चले भी आओ के तुम बिन कोई कमी सी है
    तुम्ही को ढूंढता रहता है दिल ज़माने में

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  4. हमको इक उम्र लगेगी तुम्हें सुनने में

    को

    हमको इक उम्र लगेगी तुम्हें सुनाने में

    कहें तो बेहतर लगेगा. शायद टंकण त्रुटि हो.

    रचना बढ़िया है.

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  5. ये दो घड़ी की जो मुश्किल थी टल गई होती
    ज़रा सी देर न की तुमने भूल जाने में
    जाकिर साहेब बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...माशा अल्लाह सारे शेर असरदार हैं....
    नीरज

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  6. bohot bohot shukriya aap sabhi hazraat ka meri hosla afzayi ke liye. main bohot bohot shukrguzaar hoon aap sab ka.

    udan tashtari jee woh lafz Sunaney hi tha jo ke ghalti se sunney ho gaya hai, phir bhi itni tawajjo se meri ghazal padhney ke liye aap ka bohot bohot dhanyawaad.

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  7. achcha hai badhiya hai

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