Friday, August 07, 2009

मुझको वीरान अंधेरों में....


मुझको वीरान अंधेरों में पिन्हाँ रहने दो
अपनी हमदर्दी-ओ-उल्फत की अदा रहने दो

बारहा मुझसे मेरा हाल न पूछो अब तुम
दर्द अब दे ही दिया है तो दवा रहने दो

हंस दिया भी तो मेरी आँख में आंसू होंगे
मेरी आंखों में उदासी का नशा रहने दो

तुम खुशी से हर इक गाम पे कलियाँ चुनना
मुझको जज्बों के जनाजों में दबा रहने दो

पूछो न किस तरह से गुजरी है शाम-ऐ-हिज्र
आबशारों को निगाहों में थमा रहने दो

अपना एहसास मेरी जान पराया न करो
इक मेरे पास भी जीने की वजह रहने दो

बैठ जाओ मेरे पास मुझ ही में खो कर
और सदियों तक यूँ ही वक्त रुका रहने दो

अपनी जुल्फें रुख-ऐ-रोशन से हटाना न अभी
कुछ घड़ी और ज़माने पे घटा रहने दो

तोड़ कर रस्म-ऐ-जहाँ बाँहों में मेरी आए हो
खूबसूरत है बोहोत ख्वाब सजा रहने दो

मेरी उल्फत की निगाहों का भरम तो रखो
दिल को इनाम-ऐ-इबादत का गुमा रहने दो

5 comments:

  1. Anonymous2:58 PM

    No words...too good...

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  2. बारहा मुझसे मेरा हाल न पूछो अब तुम
    दर्द अब दे ही दिया है तो दवा रहने दो
    Bahot khoob.

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  3. बैठ जाओ मेरे पास मुझ ही में खो कर
    और सदियों तक यूँ ही वक्त रुका रहने दो

    -क्या बात है. बहुत उम्दा!! वाह!!

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  4. बारहा मुझसे मेरा हाल न पूछो अब तुम
    दर्द अब दे ही दिया है तो दवा रहने दो

    सुन्दर।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं बधाई स्वीकारें।

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