Monday, October 05, 2009

जबके तुमको रो चुका


जबके तुझको रो चुका दिल सुकून पाने को है
लौट कर के दर्द-ऐ-दिल फिर वही आने को है

बे-तहाशा याद के तूफ़ान थे उठा किए
अब पडे खामोश हैं जब नाखुदा आने को है

हर शिकस्ता मोड़ पर दिल के टुकडे चुन चुके
अब न जाने जिंदगी का क्या मकाम आने को है

कब तलक बे-रब्त्गी और बे-रुखी पे रोएँ हम
एक दिल अपना ही क्या हर सज़ा पाने को है

फिर उफ्फक पर दूर तक खामोशियाँ सी छाई हैं
आसमान से फिर कोई क्या सानेहा आने को है

उम्र भर इक घुटन के साथ है जीना पड़ा
साँस आई भी तो अब जब जिंदगी जाने को है

लिल्लाह मुझको छोड़ कर न जाईये रुक जाईये
बेकरारी को किसी सूरत करार आने को है

इस तरह मंसूब थे कुछ रौशनी के सिलसिले
अब तो ये आलम के हर इक ख्वाब जल जाने को है

फिर खड़ा हूँ दिल लिए इक बेवफा के सामने
फिर तमन्ना-ऐ-सुकून ख़ाक हो जाने को है

बू-ऐ-गुल में फिर महक तेरी पनाहों की सी है
वो पुराना वक्त क्या फिर से पलट आने को है

दो क़दम चल कर ना जाने क्यूँ ठहर जाता हूँ मैं
कौन है जो साथ मेरे दूर तक आने को है

आरजू गुस्ताख फिर होने लगी है आजकल
दिल शिकस्ता होके भी फिर दगा खाने को है

इस कमनसीबी का भला अब करें तो क्या करें
आरजू मुरझाने को है और घटा छाने को है

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