
मुकुराहटों में भी रुलाये मुझे
क्या सितम है जो जान पाए मुझे
अब भी तनहा कहीं भटकता हूँ
काश आवाज़ कोई आये मुझे
मुझको मेरा कोई पता तो मिले
कोई ऐसा हो ढूंढ लाये मुझे
मैं के जैसे किताब-ऐ-दर्द-ओ-अलम
वक़्त गुज़रा है मुस्कुराये मुझे
टूटती सांस भी अदा कर दूं
वो जो सीने से गर लगाए मुझे
तुमसे बस एक शिकायत ये रही
तुम कभी वक़्त ना दे पाए मुझे
बस नहीं थी तो बात वो ही ना थी
उसके पैग़ाम कई आये मुझे
मुस्कुराऊँ मैं तुम्हारे आंसू में
ये मोजेजाह भी अल्लाह कभी दिखाए मुझे
फिर बिछड़ना पड़े तुम्हें मिल कर
ज़िन्दगी यूँ ना फिर मिलाये मुझे
जा के कहदो ये उस सितमगर से
भूल पाए तो भूल जाये मुझे
अच्छी कविता लिखी है आपने .......... आभार
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गजेन्द्र जी मेरी कविता पसंद करने के लिए आप का आभारी हूँ. धन्यवाद !
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